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उन्हें फुर्सत नहीं हमारे लिए, चलो दीवारों से बात करते हैं।।
तुम्हे फुर्सत नहीं अपनी महफ़िल से और हम तुम्हे हर-पल याद करते हैं।।
खुदा ने बड़ी फुर्सत से बनाया हैं तुम्हे तभी तो आज तक कोई तुमसा नहीं देखा।।
आज सुबह से ही हिचकिया आ रही हैं, लगता हैं आज उन्हें फुर्सत मिल ही गयी, मुझे याद करने की।।
लगता हैं उन्हें अब फुर्सत नहीं मिलती मुझे याद करने की तभी तो अब हिचकिया आती नहीं।।
चलो छत से ही सही, मेरे जनाजे को देखने की फुर्सत उन्हें मिली।।
मुझे दिल से भुलाने वाले, कभी फुर्सत से बैठना फिर सोचना, मेरा कसूर क्या था?
बड़ी फुर्सत से बैठे हैं आज तेरी यादों के ख़ज़ाने को लेकर इन्हे देख कर ऑंखें छलक आयी तो मैं क्या करू?
बड़ी फुर्सत में रहती हो तुम चली आती हो दिन-रात यादो में।।
बड़ी फुर्सत से कमरे की तन्हाईयों में बैठे रहते हैं, पता हैं क्यू? तुम्हे याद करने के लिए।।
मंजिल पे पहुँचकर लिखूंगा मैं इन रास्तों की मुश्किलों।। का जिक्र अभी तो बस आगे बढ़ने से ही फुरसत नही।।
जब हो थोड़ी फुरसत, तो अपने मन की बात हमसे कह लेना, बहुत खामोश रिश्ते कभी जिंदा नहीं रहते।।