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इंतजार शायरी

Intezar Shayari

इस पेज पर आप इंतजार शायरी पड़ेंगे जिसमें शायरी के साथ Images भी लगी हैं जिसे Download करके आप Girlfriend/Boyfriend को भेज सकते हैं।

पिछले पेज पर हमनें बेवफा लड़की के साथ क्या करना चाहिए? एवं बेवफा लड़को के साथ क्या करना चाहिए? की पोस्ट पब्लिश की हैं यदि आपको किसी ने प्यार में धोखा दिया हैं और आप उसे सजा देना चाहते हैं तो इन आर्टिकल को पढ़ सकते हैं।

चलिए इस पेज पर इंतजार शायरी को पढ़िए और जिसका आप इंतेजार करके रहे हैं उन्हें भेजिए जिससे वो आपके द्वारा भेजे गए मैसेज को पढ़कर जल्दी से आपके पास आ जाए।

इंतजार शायरी

फरियाद कर रही है यह तरसी हुई निगाह,
देखे हुए किसी को ज़माना गुजर गया।

ये कह-कह के हम दिल को समझा रहे हैं,
वो अब चल चुके हैं वो अब आ रहे हैं।

वो तारों की तरह रात भर चमकते रहे,
हम चाँद से तन्हा सफ़र करते रहे,
वो तो बीते वक़्त थे उन्हें आना न था,
हम यूँ ही सारी रात करवट बदलते रहे।

उल्फ़त के मारों से ना पूछो आलम इंतज़ार का,
पतझड़ सी है ज़िन्दगी और ख्याल है बहार का।

एक लम्हे के लिए मेरी नजरों के सामने आजा,
एक मुद्दत से मैंने खुद को आईने में नहीं देखा।

मुझको अब तुझ से मोहब्बत नहीं रही,
ऐ ज़िन्दगी तेरी भी मुझे ज़रूरत नहीं रही,
बुझ गये अब उसके इंतज़ार के वो दीये,
कहीं आस-पास भी उस की आहट नहीं रही।

एक अजनबी से मुझे इतना प्यार क्यूँ है,
इन्कार करने पर चाहत का इकरार क्यूँ है,
उसे पाना नहीं मेरी तकदीर में शायद,
फिर भी हर मोड़ पर उसका इंतजार क्यूँ है।

मुझको अब तुझ से मोहब्बत नहीं रही,
ऐ ज़िन्दगी तेरी भी मुझे ज़रूरत नहीं रही,
बुझ गये अब उसके इंतज़ार के वो दीये,
कहीं आस-पास भी उस की आहट नहीं रही।

रहेगा इश्क़ तेरा ख़ाक में मिला के मुझे,
कि इब्तिदा में हुए रंज इन्तेहाँ के मुझे,
दिए हैं हिज्र में दुःख-दर्द बला के मुझे,
शब-ए-फिराक़ ने मारा है लिटा-लिटा के मुझे।

ऐ मौत उन्हें भुलाए ज़माने गुजर गए,
आ जा कि ज़हर खाए ज़माने गुजर गए,
ओ जाने वाले आ कि तेरे इंतजार में,
रास्ते को घर बनाए ज़माने गुजर गए।

जीने की ख्वाइश में हर रोज़ मरते हैं,
वो आये न आये हम इंतज़ार करते हैं,
जूठा ही सही मेरे यार का वादा,
हम सच मानकर ऐतबार करते हैं।

कहीं वो आ के मिटा दें न इंतज़ार का लुत्फ़,
कहीं क़ुबूल न हो जाए इल्तिजा मेरी।

आँखों को इंतज़ार की भट्टी पे रख दिया,
मैंने दिये को आँधी की मर्ज़ी पे रख दिया।

किन लफ्जों में लिखूँ मैं अपने इन्तजार को तुम्हें,
बेजुबां है इश्क़ मेरा ढूँढता है खामोशी से तुझे।

झुकी हुई पलकों से उनका दीदार किया,
सब कुछ भुला के उनका इंतजार किया
वो जान ही न पाए जज्बात मेरे,
मैंने सबसे ज्यादा जिन्हें प्यार किया।

एक रात वो गया था जहाँ बात रोक के,
अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के।

क्यों किसी से इतना प्यार हो जाता है,
एक पल का इंतज़ार भी दुश्वार हो जाता है,
लगने लगते हैं अपने भी पराये,
और एक अजनबी पर ऐतबार हो जाता है।

दिल को था आपका बेसबरी से इंतजार,
पलके भी थी आपकी एक झलक को बेकरार,
आपके आने से आयी है कुछ ऐसी बहार,
कि दिल बस मांगे आपके लिये खुशियाँ बेशुमार।

सूखे पत्ते से प्यार कर लेंगे,
तुम्हारा ऐतबार कर लेंगे,
तुम ये तो कहो की हम तुम्हारे हैं,
हम ज़िन्दगी भर इंतज़ार कर लेंगे।

यूँ पलके बिछा कर तेरा इंतज़ार करते है,
यह वो गुनाह है जो हम बार बार करते है,
जलाकर हसरत की राह पर चिराग,
हम सुबह और शाम तेरे मिलने का इंतज़ार करते है।

तड़प के देखो किसी की चाहत में,
तो पता चलेगा, कि इंतजार क्या होता है,
यूं ही मिल जाए, कोई बिना चाहे,
तो कैसे पता चलेगा, कि प्यार क्या होता है।

आँखों में बसी है प्यारी सूरत तेरी,
और दिल में बसा है तेरा प्यार,
चाहे तू कबूल करे या ना करे,
हमें रहेगा तेरा इंतज़ार।

होंठ कह नही सकते जो फ़साना दिल का,
शायद नजरों से वो बात हो जाए,
इसी उम्मीद में इंतजार करते हैं रात का,
कि शायद सपनों मे ही मुलाकात हो जाए।

भले ही राह चलतों का दामन थाम ले,
मगर मेरे प्यार को भी तू पहचान ले,
कितना इंतज़ार किया है तेरे इश्क़ में,
ज़रा यह दिल की बेताबी तू भी जान ले।

तड़पती है आज भी रूह आधी रात को,
निकल पड़ते हैं आँख से आँसू आधी रात को,
इंतज़ार में तेरे वर्षों बीत गए सनम मेरे,
दिल को है आस आएगी तू आधी रात को।

तड़प कर देखो किसी की चाहत में,
पता चलेगा इंतज़ार क्या होता है,
यूँ ही मिल जाता बिना कोई तड़पे तो,
कैसे पता चलता कि प्यार क्या होता है।

तेरे इंतज़ार में यह नज़रें झुकी हैं,
तेरा दीदार करने की चाह जगी है,
न जानूँ तेरा नाम, न तेरा पता,
फिर भी न जाने क्यों इस पागल दिल में,
एक अज़ब सी बेचैनी जगी है।

वो रुख्सत हुई तो आँख मिलाकर नहीं गई,
वो क्यों गई यह बताकर नहीं गई,
लगता है वापिस अभी लौट आएगी,
वो जाते हुए चिराग़ बुझाकर नहीं गई।

हमने ये शाम चिरागों से सजा रखी है,
आपके इंतजार में पलके बिछा रखी हैं,
हवा टकरा रही है शमा से बार-बार,
और हमने शर्त इन हवाओं से लगा रखी है।

ज़ख़्म इतने गहरे हैं इज़हार क्या करें,
हम खुद निशाना बन गए वार क्या करें,
मर गए हम मगर खुली रही ये आँखें,
इससे ज्यादा उनका इंतज़ार क्या करें।

हमने ये शाम चिरागों से सजा रखी है,
आपके इंतजार में पलके बिछा रखी हैं,
हवा टकरा रही है शमा से बार-बार,
और हमने शर्त इन हवाओं से लगा रखी है।

वो रुख्सत हुई तो आँख मिलाकर नहीं गई,
वो क्यों गई यह बताकर नहीं गई,
लगता है वापिस अभी लौट आएगी,
वो जाते हुए चिराग़ बुझाकर नहीं गई।

तेरे इंतज़ार में यह नज़रें झुकी हैं,
तेरा दीदार करने की चाह जगी है,
न जानूँ तेरा नाम, न तेरा पता,
फिर भी न जाने क्यों इस पागल दिल में,
एक अज़ब सी बेचैनी जगी है।

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